Wednesday, December 30, 2015

शिक्षा और भिक्षा

यह संपादकीय हिंदुस्तान समाचार पत्र में दिनांक ३१ दिसंबर को प्रकाशित हुआ है. इस संपादकीय को पढ़ कर निम्नलिखित प्रश्नों का अपने शब्दों में उत्तर दें. 

जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, भारत के लगभग 21 प्रतिशत भिखारी ऐसे हैं, जिन्होंने स्कूली पढ़ाई पूरी की हुई है। इसका अर्थ यह है कि 3.75 लाख भिखारियों में से लगभग 78,000 पढ़े-लिखे हैं। इनमें से 3,000 के लगभग भिखारी ऐसे हैं, जो ग्रेजुएट हैं या जिन्होंने कोई डिप्लोमा कर रखा है। कुछ भिखारी तो पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री भी लिए हुए हैं। हर समाज में कुछ ऐसे लोग जरूर पाए जाते हैं, जो काम नहीं करते और दान पर गुजारा करते हैं। लेकिन अगर इनकी संख्या लाखों में है, तो यह एक सामाजिक संकट है और इसके पीछे कई आर्थिक-सामाजिक कारण हैं। पढ़े-लिखे लोग भी अगर भीख मांगने को अपना पेशा बना रहे हैं या बनाने पर मजबूर हैं, तो यह हमारी शिक्षा व्यवस्था और रोजगार की स्थितियों पर भी रोशनी डालता है।
कई सारे काम ऐसे हैं, जिनमें बहुत मेहनत है और कमाई बहुत नहीं है। कई पढ़े-लिखे भिखारी इसलिए भीख मांगने लगे, क्योंकि पहले जो काम या नौकरी वे करते थे, उससे ज्यादा आमदनी उन्हें भीख मांगने से हो जाती है। कुछ साल पहले एक खबर आई थी कि मुंबई के भिखारियों की कुल सालाना आमदनी 180 करोड़ रुपये है। इससे यह तो पता चलता ही है कि और कोई कारोबार चले या न चले, भीख का कारोबार चलता ही है। कई ऐसी खबरें भी हैं कि कुछ भिखारी बड़ी संपत्ति के मालिक हो गए हैं। एक तीर्थस्थान में एक भिखारी की हत्या के बाद यह राज खुला कि वहां कई भिखारी ब्याज पर पैसे देते हैं और हत्या कारोबारी स्पर्धा में हुई थी। ऐसे मामलों को छोड़ दें, तो ज्यादातर भिखारी अपनी जरूरत भर का पैसा ही कमा पाते हैं। यह बात कई जायज रोजगारों के बारे में दावे से नहीं कही जा सकती, खासतौर पर कम शिक्षा और निम्न स्तरीय कौशल वाले रोजगारों में अनिश्चितता, शोषण और मेहनत ज्यादा है, जबकि कमाई कम। ऐसा नहीं है कि भारत में काम नहीं है। कई क्षेत्रों में योग्य और कुशल लोगों की भारी कमी है। यह कमी भविष्य में भारत की अर्थव्यवस्था की तरक्की में बाधक हो सकती है। समस्या यह है कि आम तौर पर शिक्षा का स्तर अच्छा नहीं है या उद्योगों की जरूरत और शिक्षा के बीच तालमेल नहीं है। आम लोग यह समझते हैं कि शिक्षा भविष्य को संवारने का सबसे बड़ा जरिया है, इसलिए हर आर्थिक तबके के माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं। पढ़ाई की इस जरूरत को हमारी शिक्षा व्यवस्था पूरी नहीं कर पाती, इसलिए तरह-तरह की निजी संस्थाएं खुल गई हैं, जिनका उद्देश्य मुनाफा कमाना है। इनमें से कुछ की गुणवत्ता अच्छी है, कुछ की बहुत खराब। कई बड़ी कंपनियों का यह कहना है कि भारत के इंजीनियरिंग कॉलेजों से निकले छात्र उनकी जरूरत के मुताबिक कुशल नहीं हैं। गैर तकनीकी विषयों की शिक्षा का हाल तो इससे भी बुरा है।
हर समाज की रचना में यह निहित होता है कि जो समर्थ हैं, वे आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को आगे बढ़ने में मदद करें या अगर वे अपना रोजगार कमाने में अक्षम हैं, तो उन्हें आर्थिक सहायता दें। ऐसी सहायता धार्मिक कृत्य के रूप में भी हो सकती है और सामाजिक दायित्व की तरह भी। लेकिन अक्सर समृद्ध लोग अपना सामाजिक दायित्व नहीं निभाते और भिखारियों को कुछ देकर अपने कर्तव्य को पूरा मान लेते हैं। इस मायने में समाज में भिखारी का होना इस बात को दर्शाता है कि समाज के प्रभु वर्ग ने अपना दायित्व नहीं निभाया है। पढ़े-लिखे भिखारी यह बताते हैं कि हमारी शिक्षा व्यवस्था इन्हें सम्मानजनक काम करने लायक नहीं बना पाई और हमारी अर्थव्यवस्था में श्रम का पूरा सम्मान नहीं है। ये भिखारी हमारे समाज को आईना दिखा रहे हैं।
 
प्रश्न :
१. जनगणना क्या है? भारत में यह कब और किसके द्वारा की जाती है ?
२. अधिक संख्या में भिखारियों के होने को आर्थिक और सामाजिक समस्या क्यों कहा जा रहा है?
३. समाज मैं भिखारियों की संख्या बढ़ने के पीछे क्या कारण हैं?
४. भिखारियों की बढ़ती संख्या के पीछे हमारी शिक्षा व्यवस्था की क्या भूमिका है?
५. भिक्षा पे भरोसे जीवन यापन करने वालों की संख्या में वृद्धि के लिए समाज का उच्च वर्ग कैसे जिम्मेवार है ?
६. आपके अनुसार भिखारियों को एक गरिमा-मय जीवन देने के लिए हमें क्या कदम उठाने चाहिए?

Sunday, December 27, 2015

[Editorial # 3] सिर्फ यूरोप पर बोझ न बढ़े

यह संपादकीय हिंदुस्तान समाचार पत्र में दिनांक २७ दिसंबर को प्रकाशित हुआ है. इस संपादकीय को पढ़ कर निम्नलिखित प्रश्नों का अपने शब्दों में उत्तर दें. 

दस लाख या फिर उससे ज्यादा.. वर्ष 2015 के खत्म होते-होते अनगिनत शरणार्थियों को यूरोप की सीमा पार करने की मंजूरी मिली है। युद्ध, सांप्रदायिक तनाव, गरीबी और सुखद भविष्य की चाह के कारण लाखों लोग अपने भाग्य के साथ समझौता करने को बाध्य हुए हैं। वे सीरिया, इराक, अफगानिस्तान से आए हैं। वे उत्तर अफ्रीका के हिस्सों से आए हैं। सीमा पर रोक, भूमध्यसागर की अशांत गहराई या आक्रामक कोस्ट गार्ड- कुछ भी उन्हें रोक नहीं सके। शुरू में उनके लिए यूरोप के दरवाजे जरूर बंद रहे, मगर जर्मनी ने अपनी सीमा खोलकर सकारात्मक बदलाव की शुरुआत कर दी। यह दूसरों को प्रेरित करने वाला कदम था। इसके लिए चांसलर एंजेला मर्केल को पूरे विश्व में तारीफ मिली। हालांकि कुछ रुकावटें भी आईं, जैसे कि हंगरी का जेनोफोबिक अभियान, मगर संकट से निपटने के लिए यूरोपीय आयोग की पहल स्वागतयोग्य रही। हालांकि ज्यों-ज्यों शरणार्थियों की संख्या बढ़ रही है, यूरोपीय संघ अब ज्यादा बड़ी चुनौतियों से जूझ रहा है। शरणार्थियों के लिए एक समान दृष्टिकोण अपनाने में ब्रसेल्स यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देशों को मनाने में सफल नहीं हो पाया है। राष्ट्रीय आकांक्षाओं और सुरक्षा चिंताओं की वजह से यूरोपीय संघ के सदस्य देश अक्सर उन लोगों के प्रति रुखा व्यवहार दिखा चुके हैं, जो उम्मीदों के साथ उनके दरवाजे पर खड़े हैं। मसलन, शरणार्थियों के लिए कोटा तय करने संबंधी स्वैच्छिक कार्यक्रम को लेकर भी कई सदस्य देश उदासीन रहे। इसी कारण सभी सदस्य देशों पर यह दबाव डाला गया कि वे अपने हिस्से के शरणार्थियों को जगह दें। हालांकि इसे लेकर बाध्याकारी प्रावधान तय करने की वकालत करने के विपरीत इस सबसे बड़ी मानवीय समस्या को सहानुभूति की नजर से देखना चाहिए। जरूरत शरणार्थी समस्या के मूल कारण पर भी ध्यान देने की है। शरणार्थी समस्या एक वैश्विक मानवीय आपदा है, और चूंकि प्रवासियों के लिए सभी राहें यूरोप की ओर जाती दिख रही हैं, लिहाजा वैश्विक समुदायों को भी बराबर मात्र में यह भार उठाने के लिए आगे आना चाहिए। 
गल्फ न्यूज, संयुक्त अरब अमीरात

प्रश्न :
१. इतनी भारी मात्रा में शरणार्थी यूरोप की सीमा क्योँ पार कर रहे हैं ?
२. ये शरणार्थी कहाँ से पलायन कर रहे हैं?
३. सीरिया, इराक और अफ़ग़ानिस्तान को विश्व के मानचित्र में अंकित करें । 
४. भूमध्यसागर के चारो ओर कौन कौन से देश हैं?
५. हंगरी का जेनोफोबिक अभियान का अभियान क्या है?
६. यूरोपीय संघ क्या है? कौन से देश इसके सदस्य हैं?
७. यूरोपीय आयोग और यूरोपीय संघ में क्या अंतर है?
८. क्या शरणार्थी समस्या एक वैश्विक मानवीय आपदा है? कैसे?
९. शरणार्थी समस्या से निपटने के लिए यूरोपीय संघ एवं अन्य देशों ने क्या कदम उठाये हैं? उन्हें किन मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है?


Friday, December 25, 2015

[Editorial # 2] Lahore ka padav

यह संपादकीय हिंदुस्तान समाचार पत्र में दिनांक २५ दिसंबर को प्रकाशित हुआ है. इस संपादकीय को पढ़ कर निम्नलिखित प्रश्नों का अपने शब्दों में उत्तर दें. 

१. भारत और पाकिस्तान के संबंधों में तनाव के क्या कारण हैं?
२. पूर्व में ऐसी कौन सी घटनाएं घटित हुई जिससे दोनों देशों के रिश्तों में तनाव पैदा हुए हों?
३. दोनों देशों के रिश्तों को मज़बूत करने के लिए क्या क्या पहल किये गए हैं?
४. क्या आपको लगता है कि दोनों देशों के नेताओं की ऐसे अनौपचारिक मुलाकातों से भारत-पाकिस्तान संबंधों में सुधार होगा? क्यों अथवा क्यों नहीं?
५. पड़ोसी देशों के साथ अच्छे सम्बन्ध होने पर क्यों बल दिया जाता है? 

Thursday, December 24, 2015

[Editorial # 1] Sam-visham paristhiti: Hindustan

यह संपादकीय हिंदुस्तान समाचार पत्र में दिनांक २५ दिसंबर को प्रकाशित हुआ है. इस संपादकीय को पढ़ कर निम्नलिखित प्रश्नों का अपने शब्दों में उत्तर दें. 

१. वायु प्रदुषण क्या है? वायु प्रदुषण किन कारणों से फैलता है?
२. वायु प्रदुषण के दुष्प्रभाव क्या हैं?
३. दिल्ली सरकार द्वारा प्रदुषण रोकने के उपायों को लागु करने में क्या व्यवहारिक कठिनाइयां आ सकती हैं?
४. संपादक के अनुसार सम-विषम का फार्मूला दीर्घकालीन समाधान क्यों नहीं है?
५. आपके अनुसार प्रदुषण रोकने के कौन से उपाए किये जाने चाहिए?
६ . प्रदुषण के दीर्घकालीन समाधान के लिए कौन कौन से कदम उठाये जाने चाहिए ?
७. प्रदुषण को मापने के क्या साधन हैं?
८. वायु के अलावा और कौन कौन से संसाधन प्रदूषित हो रहे हैं?